मुजे जब जब ख्वाजा मुईनकी याद आएगी
मेरे दिलको खुनके आसुं रूलायेगी...
रोझा तेरा हम गरीबोका मदीना हुआ
ख्वाझा हिन्दका मरतबा कया आला हुआ...
तुम हबीबे खुदाकी नुरी कीरन
कुफर की तारीकीयोमें तौहीदका चर्चा हुवा...
अना की खुदीया सारी मीट जाएगी
अना सागर जा बसा कुंजेमें ये कहतेता हुवा...
कयुं उतर आये फरीश्ते अजमेरमें
बोले खुल्देबरी का, हाये हमें धोखा हुवा...
शाने तयबाह जल्वागर है दरपे तेरे
हम गरीबो की तो हज, उर्षका मौका हुवा...
अरे मुश्को अंबरसे मुजे कया हो गरझ
ख्वाझा की जब याद आई, दिल मुअत्तर हुवा...
कयुं मुस्कूराकर केहती है, झाईरों की नझर
जीत ली ख्वाजा वो बाझी थी कभी हारा हुवा...
है “दिलावर” ये तेरी, अदाये आशीकी
तुने पाया पीर भी, खाजा से मीलता हुवा...