मैने ख्वाजा सा कोई, कोई ख्वाजा सा कोई, दरबार नही देखा
मैने दाता देखे है, देखे है दाता देखे है, उनसा दातार नही देखा...
भीड सुब्हो शाम गरीबोकी है, देखो जहां टोली फकिरोकी है
कोई जाली थामे कोई चादर थामे, कहीं तो मुस्काये कहीं तो सीसकाये ये खुदी ख्वाहो को कभी, कभी खुदी ख्वाहो को
कभी युं लाचार नही देखा...
हिंद की उंची ऐसी तकदीर है, ख्वाजा की बन गया वो जागीर है
हो उसका नाम बडा, उसका काम बडा, तुं अन्नदाता है, सभीको भाता है
अपनी रैयत से कभी. देखोजी रैयत से कभी, बेझार नही देखा...
अताए रसुल की ऐसी तासीर है, हाजत रवाईमें न ताखीर है
मुरादे मील जाये, सुखे फुल खील जाये, गरीब की आंस है,
सदा ही पास है
गरीब की नझरोने ऐसा, ऐसा नझरोने ऐसा, कोई गमख्वार नही देखा...
तकदीर का लीखा भी टल जाता है, मुकद्दरमें ना हो वो भी मील जाता है दुआ नाकाम नही, ये ऐसा जाम नही, जो पलमें
भर जाये, वो सागर पी जाये
उनके मौजे दरीयामें, दरीयामें मौजे दरियामें, टुटा पतवार नही देखा...
जमे ऐसे उंट फीर वो उठे नही, झबां से नीकले अलफाझ वो जुठे नही पानी भी गेहरा है, सागर पे पहेरा है, खादीम जो
गभराया, ख्वाजाने फरमाया
सागर कुंजे में सीम्टा है, सीम्टा है कुंजेमें सीम्टा है, ऐसा मुख्तार नही देखा...
सदा काबेमें गुंजी तुं मकबुल है, फरमाया मेरे भी कुछ उसुल है
बहीश्तमें ना जाउं, जो अपने ना पाउं, मेरे भी साथ हो तो फीर कुछ बात हो
वो चिश्ती बहीश्ती फरमाया, फरमाया चीश्ती बहीश्ती फरमाया, ऐसा दीलदार नही देखा...
निझामो फरीद है बख्तयार है, नसीरो खुशरू साबीरे यार है
खुदा के प्यारे है, चिश्तीया तारे है, करामत भारी है, तेरी बलहारी है
मैने दुनियाको देखा है, देखा है दुनियाको देखा है, ऐसा रूहानी संसार नही देखा...
हिन्दके गरीबोका मदीना तो है, रोझा तेरा जन्नती नगीना तो है
मंहेकता फुल है, बुंए रसुल है फरीश्ते आते है, नुर बरसाते है
झर्मी से जन्नत का ऐसा ऐसा जन्नत का ऐसा, सरोकार नही देखा...
पीर मैने पाया ऐसा लासानी है, ख्वाजा की पाया जो महेरबानी है दख्खन का नाझ है, खुदा का राझ है, “दिलावर” कया
कहुं, अच्छा है चुप रहुं
श्यीरे बाहिद” सा कोई, कोई “वाहिद” सा कोई, पीरो सरकार नही देखा...
चीश्तीया रूक्का गौषीया मोहर है, फैझ उनका जारी आठो पहर है
पीर सब आला है बुलंदो बाला है, लायके एहतराम, सबका दीलमें मकाम
“दिलावर” दख्खनी दुल्हासा, दुल्हासा दख्खनी दुल्हासा, दिल फीगार नही देखा...