ख्वाजा दरपे बुलाना, ख्वाजा दरपे बुलाना
सभी गरीब है तेरे, नवाझे गरीब नवाझी दीखाना...
मौला अलीका लाल है ख्वाजा, झोहरा बीं का प्यारा
मौजे रहेमत छलकी उधरसे, हिन्दमें आया धारा
बे चारो को चारा मीला है, भटके हुवो को मंझिल
नीत दीन ख्वाजा ख्वाजा पुकारे, देखो गरीबो का दील...
दरबारे मुईनकी बात निराली, अंदाझ है रहेमताना
दीलमें आया उनका लेते है, उनके फकिर नझराना
देख फकिरो की खुद्दारी, शरमा जाये सीकंदर
तेरा दील भी पुकारे खुशीमें, देखे जो ये मंझर...
तारागढ की ताझी बहारे अना सागर की लहेरे
चीश्ती नगरका भरती है, दो दासीया मीलके पहेरे
मीस्ले चांदी चमके झर्रा, झमझम सा पानी लागे
अजमेर गरीबो का है मदीना, तेरा दील ये गाने लागे...
चमचम चमके धोला गुम्बद कोई चमके जैसे तारा
ख्वाजा ही चमका देंगे, एक दीन नसीब हमारा
गरीब परवर है वो ख्वाजा, सबका खैवनहारा
आसका पंछी दीलका पींजरा, तोडके येही पुकारा...
कोई हसे कोई रोये, कोई मन ही मन मुस्काये
कोई लुटाये तनमन धन, कोई मनकी मुरादे पाये
कहीं जोगन कोई धुनी रमाये, कही फकिर लगाते नारा
फीरसे बुलाना हमको ख्वाजा, कोई रोते रोते पुकारा...
आगे “बाहिद” पीछे “दिलावर” जैसे शम्आ परवाना
सहेनमें खाजा के फीरते थे, जैसे कोई दिवाना
दो ख्वाजा को साथमें पाया, कीसको लागु पाये
ईक ख्वाजाको शीश नवाये, ईक के पकले पाये...