(1) हुज़ूरे पाक, साहिबे लौलाक, सय्याहे अफ्लाक صلاله عليه وسلم ने फ़रमाया कि सूरए फ़ातिहा हर मरज़ की दवा है।
(2) मुस्नदे दारिमी में है कि 100 मर्तबा सूरए फ़ातिहा पढ़ कर जो दुआ मांगी जाए उस को अल्लाह तआला क़बूल फ़रमाता है। ( जन्नती जे़वर, स. 587)
(3) बुज़ुर्गों ने फ़रमाया है कि फ़ज्र की सुन्नतों और फ़र्ज़ के दरमियान में 41 बार सूरए फ़ातिहा पढ़ कर मरीज़ पर दम करने से आराम हो जाता है और आंख का दर्द बहुत जल्द अच्छा हो जाता है और अगर इतना पढ़ कर अपना थूक आंखों में लगा दिया जाए तो बहुत मुफीद है। ( ऐज़न, स. 587)
(4) सात दिनों तक रोज़ाना ग्यारह हज़ार मर्तबा सिर्फ इतना पढ़िये (इय्या कन्अ बुदु व इय्या कनस्तई़न) अव्वल आखिर तीन तीन बार दुरूद शरीफ़ भी पढ़िये बीमारियों और बलाओं को दूर करने के लिये बहुत ही मुजर्रब अमल है। ( जन्नती जे़वर, स. 588