(1) हज़रते सय्यदुना अनस رضي الله تالا أنه से मरवी है कि नूर के पैकर, तमाम नबियों के सरवर, दो जहां के ताजवर, सुल्ताने बहरो बर صلاله عليه وسلم ने फ़रमाया जब तुम अपना पहलू बिस्तर पर रख कर सूरए फ़ातिहा और (क़ूल हू वल्लाहु अहद.) (पूरी सूरत) पढ़ लोगे तो मौत के इलावा हर चीज़ से अमान में आ जाओगे।
(2) हज़रते सय्यदुना इरबाज़ बिन सारिया رضي الله تالا أنه से मरवी है कि हुस्ने अख़लाक़ के पैकर, नबियों के जवर, महबूबे रब्बे अक्बर صلاله عليه وسلم सोने से पहले मुसब्बिहात पढ़ा करते थे और फ़रमाया करते कि इन में एक यत है जो हज़ार आयतों से बेहतर है।
हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान इस हदीसे पाक के तहत फ़रमाते हैं: येह (या'नी मुसब्बिहात) सूरतें कुल सात हैं सूरए असरा, सूरए हृदीद, सूरए हश्र, सूरए सफ़, सूरए जुमुआ, सूरए तगा़बुन और सूरए आ 'ला, ज़ाहिर है कि सरकार पूरी सूरतें न पढ़ते होंगे कि येह तो बहुत ज़यादा हैं बल्कि इन की चीदा चीदा आयात तिलावत फ़रमाते होंगे।
(3) हज़रते सय्यिदुना नौफिल رضي الله تالا أنهफ़रमाते हैं कि नबिय्ये मुकर्रम, नूरे मुजस्सम, रसूले अकरम, शहन्शाहे बनी आदम صلاله عليه وسلم ने मुझ से फ़रमाया: (सुराह काफ़िरुन) पूरी पढ़कर सोया करो क्यूं कि येह शिर्क से बराअत है।
(4) हज़रते सय्यिदुना अबू सईद खुदरी रहमतुल्लाहि अलैहि से मरवी है कि ख़ातिमुल मुर- सलीन, रहमतुल्लिल आलमीन, शफीउल मुज्निबीन, अनीसुल गरीबीन, सिराजुस्सालिकीन, महबूबे रब्बुल आ-लमीन, जनाबे सादिको अमीन صلاله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो अपने बिस्तर पर आते वक्त तीन मर्तबा येह पढ़ ले : (पूरा अस्तग़ फार) (तरजमा : मैं अल्लाह से बख़्शिश चाहता हूं जिस के सिवा कोई मा' बूद नहीं वोह ज़िन्दा और क़ाइम रखने वाला है और मैं उसी की तरफ़ रुजू करता हूं।) अल्लाह तआला उस के गुनाह बख़्श देता है अगर्चे समुन्दर की झाग के बराबर हों, अगर्चे दरख़्तो के पत्तो के बराबर हों, अगर्चे टीलों की रेत के ज़रात के बराबर हों, अगर्चे दुन्या के अय्याम के बराबर हों। (سنن الترمذي ج5 ص ٢٥٥ حديث ٣٤٠٨)
(5)सूरए कह्फ की आखिरी चार आयतें रात में या सुब्ह जिस वक्त जागने की निय्यत से पढ़ें आंख खुलेगी.(मदनी पंजसुराह)