एक आम इंसान माँ के पेट से सब कुछ सीख कर पैदा नहीं होता बल्कि इस दुनिया में आ कर सीखना पड़ता है। चलना, बोलना, लिखना, पढ़ना और बालिग होने के क़रीब होता है तो नमाज़ का तरीक़ा सीखना पड़ता है, रमज़ान में रोज़े रखने के लिये मसाइल सीखने पड़ते हैं, पैसे हो जायें तो ज़कात के मसाइल सीखने पड़ते हैं, हज और उमरा को जाये तो मसाइल का इल्म होना ज़रूरी है। पैदाइश से ले कर मौत तक ये सिलसिला जारी रहता है कि इंसान कुछ ना कुछ सीखता रहता है और सेक्स नॉलेज भी इन्हीं में से एक है।
इसे सीखने में ये बात खास अहमियत रखती है कि वो किस से क्या सीखता है। अगर दीन किसी बद मज़हब से सीखेगा तो आखिरत बरबाद हो जायेगी। अगर ना अहल से कोई काम सीखेगा तो कामयाबी नहीं मिलेगी और सेक्स भी अगर गलत ज़रियों (Sources) से सीखता है तो नुक़सान उठाना पड़ेगा। नमाज़, रोज़े वग़ैरह के मसाइल लोग उमूमन पूछ लिया करते हैं लेकिन सेक्स से मुतल्लिक़ पूछने में शर्म महसूस होती है हालाँकि ऐसा नहीं होना चाहिये।
अल्लाह त'आला क़ुरआन में इरशाद फ़रमाता है: وَ اللّٰهُ لَا یَسْتَحْیٖ مِنَ الْحَقِّؕ (33:53)
"अल्लाह हक़ फ़रमाने में शर्माता नहीं"
ये कोई बुरी बात नहीं कि आप इस बारे में इल्म हासिल करें बल्कि ज़रूरी है कि शादी से पहले ये जान लें कि क्या करना चाहिये और किन बातों से बचना चाहिये। अगर आप को इल्म नहीं होगा तो मुम्किन है कि आप ऐसा कुछ कर जायें जो आप के काँधों पर गुनाहों के बोझ में इज़ाफ़ा कर दे।
हम कोशिश करेंगे कि आसान से आसान लफ्ज़ों में बयान करने की कोशिश करें ताकि हर शख्स को बात समझ में आ सके। जहाँ उर्दू के थोड़े सख्त अल्फाज़ इस्तिमाल होंगे वहाँ ब्रेकेट में उसके आसान मानों को लिख दिया जायेगा। साथ ही साथ कुछ इल्मी पॉइंट्स भी बयान किये जायेंगे।
अगर कोई ये सोचता है कि निकाह का मक़्सद सिर्फ सेक्स की लज़्ज़त हासिल करना है तो ये सहीह नहीं है। ये भी है लेकिन अस्ल है औलाद का हुसूल। हज़रते उमर फ़ारूक़ रदिअल्लाहु त'आला अन्हु फरमाते हैं कि मैं सिर्फ क़ज़ा -ए- शहवत के लिए अपनी अज़वाज (बीवियों) के पास नहीं जाता बल्कि मेरी निय्यत औलाद का हुसूल है, अगर ये मक़्सद ना होता तो मेरी एक ही ज़ौजा (बीवी) होती। (انساب الاشراف، عمر بن الخطاب، ج10، ص343 بہ حوالہ فیضان فاروق اعظم، ج1، ص77)
एक मर्तबा आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने फ़रमाया कि मै खुद को जिमा (Sex) करने पर इसलिए मजबूर करता हूँ कि मुम्किन है अल्लाह त'आला मुझे ऐसी नेक और सालेह औलाद अता फरमाये जो उसकी तस्बीह करे और हर वक़्त उसकी याद में मगन रहे। (سنن کبری، کتاب النکاح، باب الرغبة فی النکاح، ج7، ص126، حدیث13460 بہ حوالہ ایضاً)
हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन उमर रदिअल्लाहु त'आला अन्हु फरमाते हैं कि मेरे वालिद (हज़रते उमर फ़ारूक़) शहवत के लिए निकाह नहीं करते थे बल्कि औलाद के हुसूल के लिए निकाह करते थे। (طبقات کبری، ذکر استخلاف عمر، ج3، ص247 بہ حوالہ ایضاً)
"तुम्हारी औरतें तुम्हारे लिए खेतियाँ हैं तो अपनी खेतियों में जिस तरह चाहो आओ।"
क़ुरआन की इस आयत में बीवियों को शौहरों की खेती क़रार दिया गया है और ये इजाज़त दी गयी है कि खेत में जिस तरह चाहें आ सकते है। अल्लामा अब्दुर रज़्ज़ाक़ भतरालवी लिखते है कि यहाँ औरतों को ज़मीन से तशबीह दी गयी है, जिस तरह ज़मीन में बीज (Seed) डाला जाता है उसी तरह बीवी के रहम (बच्चे दानी) में नुत्फ़ा जो बीज की तरह है डाला जाता है और औलाद को ज़मीन की पैदावार से तशबीह दी गयी।
इस आयत का मुख्तसर मतलब ये है कि तुम्हारी बीवियाँ तुम्हारे लिये खेती हैं यानी जिस तरह खेती से पैदावार होती है उसी तरह इनसे भी औलाद पैदा होती है तुम अपनी बीवियों के पास आओ जिस तरह चाहो यानी उन से जिमा (Sex) तो अगले हिस्से में करो लेकिन जिमा करने की कैफियत मुअय्यन नहीं बल्कि बैठ कर या लेट कर, अगली जानिब से या पिछली जानिब से, जिस तरह चाहो उस तरह जिमा करने की तुम्हें इजाज़त है (लेकिन आगे के ही मक़ाम में, पोजीशन जैसी भी हो पर सेक्स आगे के मकाम में ही जाइज़ है) (تفسیر نجوم الفرقان، ج5، ص487)
इस आयत से एक मसअला ये मालूम होता है कि औरत के आगे के मक़ाम में ही जिमा (Sex) किया जा सकता है क्योंकि बीज डालने की जगह आगे ही है और ये समझ आता है कि निक़ाह करने का असल मक़सद वही होना चाहिए जो निकाह की हिकमत है और निकाह की हिकमत ही ये है कि औलाद पैदा हो और नस्ल बरक़रार रहे।(تفسیر نجوم الفرقان، ج5، ص488)