मस्अला: भूल कर खाना खाया, पिया, जिम्अ किया रोजा़ न टूटा। ख़ाह रोजा़ फ़र्ज़ हो या नफ़ल।
मस्अला: मक्खी, धुवां, गुबार, हलक में जाने से रोजा नहीं टूटता, ख़्वाह वह गुबार आटे का ही क्यों न हो, जो चक्की पीसन से उड़ता है।
तेल, सुर्मा लगाया तो रोज़ा न टूटा अगरचे तेल या सुर्मा का मजा़ हलक में मेहसूस होता हो। बल्कि थूक में सुर्मा का रंग भी दिखाई देता हो तब भी रोजा़ नहीं टूटा।
मस्अला: एहतिलाम हो जाने, या हम बिस्तरी करने के बाद गुस्ल न किया और उसी हालत में पूरा दिन गुजा़र दिया तो वह नमाजो़ के छोड़ देने के सबब सख्त गुनहगार होगा मगर रोज़ा अदा हो जाएगा।
मस्अला: खून निकलवाने वा कहीं जख़म हो जाने से रोजा़ नहीं टूटता है, हां! रोजा़ की हालत में खून नहीं निकलवाना चाहिए कि रोज़ा की हालत में ऐसा काम मकरूह है जिससे कमजो़री आए । रग के ज़रिये ख़ून चढ़ाने से भी रोजा न टूटेगा।
मस्अला: मंजन करना रोज़ा की हालत में मकरूह है बल्कि इसका कोई ज़र्रा हलक से नीचे चला गया तो रोजा़ टूट जाएगा।
मस्अला: बोसा लिया मगर इंजाल न हुआ तो रोजा नहीं टूटा।
मस्अला: औरत की तरफ़ बल्कि उसकी शर्मगाह की तरफ नजर की मगर हाथ न लगाया ओर इंजाल हो गया या बार बार जिम्अ के ख्याल से इंजाल हो गया तो रोजा़ नहीं टूटा।
मस्अला: तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हलक़ से उतर गई तो रोजा़ न टूटा मगर उस चीज़ का मजा़ हलक में मेहसूस होता हो तो रोजा़ टूट जाएगा।