नमाज़े तहज्जुद:इसी सलातुल लैल की एक किस्म तहज्जुद है। तहज्जुद ये है कि इशा की नमाज़ के बाद सो कर उठें और नफ्ल पढ़ें।
सोने से पहले जो कुछ पढ़ें वो तहज्जुद नहीं।
तहज्जुद नफ़्ल का नाम है तो अगर कोई इशा के बाद सो कर उठा और कज़ा नमाज़ें पढ़ीं तो उसे तहज्जुद ना कहेंगे।
कम से कम तहज्जुद की दो रकाअतें हैं यानी 2 पढ़ सकते हैं और हुज़ूर ﷺ से 8 रकाअत साबित है।
नियत की मेने २ रकात नफ़्ल तहज्जुद की वास्ते अल्लाह ताला के मुह मेरा काबा शरीफ की तरफ, अल्लाहु अकबर
हुज़ूर नबी ए करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जो शख्स रात को बेदार हो और अपने अहल को जगाये फिर दो दो रकाअत वो पढ़ें तो कसरत से याद करने वालों में लिखे जायेंगे।
जो शख्स रात के तीन हिस्से करना चाहता है और दो हिस्से सोने के लिये और एक हिस्सा इबादत के लिये रखना चाहता है तो बेहतर ये है कि पहला और आखिरी हिस्सा सोने के लिये रखे और बीच वाले हिस्से में इबादत करे और अगर आधी रात सोना चाहता है और आधी इबादत तो पिछली आधी रात इबादत के लिये अफ़ज़ल है कि बुखारी व मुस्लिम में हज़रते अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि अल्लाह तआला हर रात में जब पिछली तिहाई बाक़ी रहती है तो आस्माने दुनिया पर तजल्ली फ़रमाता है और फरमाता है कि है कोई दुआ करने वाला कि उस की दुआ कुबूल की करूँ, है कोई मांगने वाला कि उसे दूँ और है कोई मगफिरत चाहने वाला कि उसे बख्श दूँ।
दोनो ईद, और 15वीं शाबान की रातों, और रमज़ान की आखिर 10 रातों में शब बेदारी मुस्तहब है। रात के अक्सर हिस्से में जागना भी शब बेदारी है। ईदैन की रातों में शब बेदारी ये है कि इशा की और सुबह की नमाज़ जमाअते ऊला से पढ़े कि सहीह हदीस में है कि जिस ने इशा की नमाज़ जमाअत से पढ़ी उस ने आधी रात इबादत की और जिस ने फज्र की नमाज़ पढ़ी उस ने पूरी रात इबादत की। (सहीह मुस्लिम)
अगर ईद की रात में जागेगा तो फिर नमाज़े ईद और क़ुरबानी में दिक़्क़त होगी लिहाज़ा सिर्फ इतना ही करे कि इशा व फज्र जमाअते ऊला ना छूटने पाये और अगर जागने से हर्ज नहीं होगा तो जागना बेहतर है। इन रातों में तन्हा नफ़्ल नमाज़ पढ़ना, क़ुरआन की तिलावत, हदीस पढ़ना या सुनना, दुरूद वग़ैरह पढ़ना शब बेदारी है ना कि सिर्फ़ जागना।