हज़रते हुज़ैफा रदिअल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि जब हुज़ूर ﷺ को कोई अम्रे अहम पेश आता तो नमाज़ पढ़ते।
इस के लिये 2 रकाअत या 4 पढ़े, हदीस में है कि पहली रकाअत में सूरतुल फातिहा के बाद 3 बार आयतुल कुर्सी पढ़े और बाक़ी तीन रकाअतो में सूरतुल फातिहा और इख़लास, फलक़ और नास एक-एक बार पढ़े तो ये 4 रकाअतें ऐसी हैं जैसे शबे क़द्र की 4 रकाअतें।
मशाइख़ फरमाते हैं कि हम ने ये नमाज़ पढ़ी और हमारी हाजतें पूरी हुई।
इब्ने माजा और तिर्मिज़ी में एक हदीस ये है के नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जिस को अल्लाह की तरफ़ से कोई हाजत हो या किसी बनी आदम की तरफ़ से तो अच्छी तरह वुज़ू कर के दो रकाअत नमाज़ पढ़े और फ़िर अल्लाह पाक की सना करे और नबी पर दुरुद पढ़े फ़िर ये
لَآ اِلٰہَ اِلَّا اللہ الْحَلِیْمُ الْکَرِیْمُ سُبْحَانَ اللہ رَبِّ الْعَرْشِ الْعَظِیْمِ اَلْحَمْدُللہ رَبِّ الْعَالَمِیْنَ اَسْأَ لُکَ مُوْجِبَاتِ رَحْمَتِکَ وَعَزَائِمَ مَغْفِرَتِکَ وَالْغَنِیْمَۃَ مِنْ کُلِّ بِرٍّ وَّالسَّلَامَۃَ مِنْ کُلِّ اِثْمٍ لَّا تَدَعْ لِیْ ذَنْبًا اِلَّا غَفَرْتَہٗ وَلَا ھَمًّا اِلَّا فَرَّجْتَہٗ وَلَا حَاجَۃً ھِیَ لَکَ رِضًا اِلَّا قَضَیْتَھَا یَا اَرْحَمَ الرَّاحِمِیْنَ
तिर्मिज़ी व इब्ने माजा हज़रते उस्मान बिन हनीफ से रावी कि एक नाबीना हुज़ूर ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ी की : अल्लाह से दुआ कीजीये कि मुझे आफ़ियत दे।
आप ने फ़रमाया : अगर तू चाहे तो तेरे लिये दुआ करुँ और चाहे तो सब्र कर कि ये तेरे लिये बेहतर है, उस ने कहा कि हुज़ूर दुआ करें तोआपने फ़रमाया कि अच्छे से वुज़ू करो और फिर दो रकाअत नमाज़ पढ़ो और फिर ये दुआ पढ़ो: اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَسْأَ لُکَ وَاَ تَوَسَّلُ وَاَ تَوَجَّہُ اِلَیْکَ بِنَبِیِّکَ مُحَمَّدٍ نَّبِیِّ الرَّحْمَۃِ یَا رَسُوْلَ اللہ اِنِّیْ تَوَجَّھْتُ بِکَ اِلٰی رَبِّیْ فِیْ حَاجَتِیْ ھٰذِہٖ لِتُقْضٰی لِیْ اَللّٰھُمَّ فَشَفِّعْہُ فِیَّ
हज़रत उस्मान बिन हनीफ रदिअल्लाहु त'आला अन्हु फ़रमाते हैं कि खुदा की क़सम हम उठने भी ना पाये थे, बातें ही कर रहे थे कि वो हमारे पास आये गोया कभी अँधे थे ही नहीं। नीज़ क़ज़ाये हाजत के लिये एक मुजर्रब नमाज़ जो उलमा हमेशा पढ़ते आये ये है कि इमामे आज़म अबू हनीफा रदिअल्लाहु त'आला अन्हु के मज़ारे मुबारक पर जा कर 2 रकाअत नमाज़ पढ़े और इमाम के वसीले से अल्लाह त'आला से सवाल करे।
इमाम शाफई रहीमहुल्लाह त'आला फ़रमाते हैं कि मैं ऐसा करता हूँ तो बहुत जल्द मेरी हाजत पूरी हो जाती है। -(खैरातुल हिसान)