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मुनफ़रिद का फ़र्ज़ों की जमा'अत | Munfarid(akela) Ka Farzo Ki Jamaat


By ilmnoohai.com   ·  
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मुनफ़रिद का फ़र्ज़ों के मस्अले | Munfarid(akela) Ke Masail

तन्हा फ़र्ज़ नमाज़ शुरू ही की थी यानी अभी पहली रकअत का सजदा नहीं किया था कि जमाअत क़ाइम हुई तो तोड़ कर जमाअत में शामिल हो जाये।

फ़ज्र या मग़रिब की नमाज़ एक रकअत पढ़ चुका था कि जमाअत क़ाइम हुयी तो फ़ौरन नमाज़ तोड़ कर जमाअत में शामिल हो जाये अगर्चे दूसरी रकअत पढ़ रहा हो, अलबत्ता दूसरी रकअत का सजदा कर लिया तो अब इन दो नमाज़ों में तोड़ने की इजाज़त नहीं और नमाज़ पूरी करने के बाद बानिय्यते नफ़्ल भी इन में शरीक नहीं हो सकता कि फ़ज्र के बाद नफ़्ल जाइज़ नहीं और मग़रिब में इस वजह से कि तीन रकअतें नफ़्ल की नहीं और मग़रिब में अगर शामिल हो गया तो बुरा किया, इमाम के सलाम फेरने के बाद एक रकअत और मिला कर चार कर ले और अगर इमाम के साथ सलाम फ़ेर दिया तो नमाज़ फ़ासिद हो गई चार रकअत क़ज़ा करे।

मग़रिब पढ़ने वाले के पीछे नफ़्ल की निय्यत से शामिल हो गया। इमाम ने चौथी रकअत को तीसरी गुमान किया और खड़ा हो गया इस मुक़तदी ने उस का इत्तिबा किया, इस की नमाज़ फ़ासिद हो गई, तीसरी पर इमाम ने क़ादा किया हो या नहीं।

चार रकअत वाली नमाज़ शुरू कर के एक रकअत पढ़ ली यानी पहली रकअत का सजदा कर लिया तो वाजिब है कि एक और पढ़ कर तोड़ दे कि ये दो रकअतें नफ़्ल हो जायेंगी और दो पढ़ ली हैं तो अभी तोड़ दे यानी तशह्हुद पढ़ कर सलाम फेर दे और तीन पढ़ ली हैं तो वाजिब है कि ना तोड़े, तोड़ेगा तो गुनाहगार होगा बल्कि हुक्म ये है कि पूरी कर के नफ़्ल की निय्यत से जमाअत में शामिल हो जमाअत का सवाब पा लेगा, मगर अस्र में शामिल नहीं हो सकता कि अस्र के बाद नफ़्ल जाइज़ नहीं।

जमाअत क़ाइम होने से मुअज़्ज़िन का तकबीर कहना मुराद नहीं बल्कि जमाअत शुरू हो जाना मुराद है, अज़्ज़िन के तकबीर कहने से क़त'अ ना करेगा अगर्चे पहली रकअत का हुनूज़ (अब तक) सजदा ना किया हो।

जमाअत क़ाइम होने से नमाज़ क़त'अ करना उस वक़्त है कि जिस मक़ाम पर ये नमाज़ पढ़ता हो वहीं जमाअत क़ाइम हो, अगर घर में नमाज़ पढ़ता है और मस्जिद में जमाअत क़ाइम हुयी या एक मस्जिद में ये पढ़ता है और दूसरी मस्जिद में जमाअत क़ाइम हुयी तो तोड़ने का हुक्म नहीं अगर्चे पहली का सजदा ना किया हो।

नफ़्ल शुरू किये थे और जमाअत क़ाइम हुयी तो क़त'अ ना करे बल्कि दो रकअत पूरी कर ले, अगर्चे पहली रकअत का सजदा भी ना किया हो और तीसरी पढ़ता हो तो चार पूरी कर ले। जुम्आ और ज़ुहर की सुन्नतें पढ़ने में ख़ुतबा या जमाअत शुरू हुई तो चार पूरी कर ले।

सुन्नत या क़ज़ा नमाज़ शुरू की और जमाअत क़ायम हुई तो पूरी करके शामिल हो, हाँ! जो क़ज़ा शुरू की अगर बि एनिही उसी क़ज़ा के लिए जमाअत क़ायम हुई तो तोड़ कर शामिल हो जाये।

नमाज़ तोड़ना बग़ैर उज़्र हो तो हराम है और माल के तलफ़ का अंदेशा हो तो मुबाह और कामिल करने के लिये हो तो मुस्तहब और जान बचाने के लिये हो तो वाजिब। नमाज़ तोड़ने के लिये बैठने की हाजत नहीं खड़ा-खड़ा एक तरफ़ सलाम फेर कर तोड़ दे।

जिस शख़्स ने नमाज़ ना पढ़ी हो उसे मस्जिद से अज़ान के बाद निकलना मकरूहे तहरीमी है। इब्ने माजा उस्मान रदिअल्लाहु त'आला अन्हा से रावी, कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया ’’अज़ान के बाद जो मस्जिद से चला गया और किसी हाजत के लिये नहीं गया और ना वापस होने का इरादा है वो मुनाफ़िक़ है। इमाम बुख़ारी के अलावा जमाअते मुहद्दिसीन ने रिवायत की कि अबुल शअसा कहते हैं : हम अबु हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु के साथ मस्जिद में थे जब मुअज़्ज़िन ने अस्र की अज़ान कही, उस वक़्त एक शख़्स चला गया इस पर फ़रमाया कि ''इस ने अबुल क़ासिम ﷺ की नाफ़रमानी की।"

अज़ान से मुराद वक़्ते नमाज़ हो जाना है, ख्वाह अभी अज़ान हुई हो या नहीं। जो शख़्स किसी दूसरी मस्जिद की जमाअत का मुंतज़िम हो, मस्लन इमाम या मुअज़्ज़िन हो कि इस के होने से लोग होते हैं वरना मुतफ़र्रिक़ हो जाते हैं ऐसे शख़्स को इजाज़त है कि यहाँ से अपनी मस्जिद को चला जाये अगर्चे यहाँ इक़ामत भी शुरू हो गई हो मगर जिस मस्जिद का मुंतज़िम है अगर वहाँ जमाअत हो चुकी तो अब यहाँ से जाने की इजाज़त नहीं।

सबक़ का वक़्त है तो यहाँ से अपने उस्ताद की मस्जिद को जा सकता है या कोई ज़रूरत हो और वापिस होने का इरादा हो तो भी जाने की इजाज़त है, जबकि ज़न ग़ालिब हो कि जमाअत से पहले वापिस आ जायेगा। जिसने ज़ुहर या इशा की नमाज़ तन्हा पढ़ ली हो ,उसे मस्जिद से चले जाने की मुमानिअत उस वक़्त है कि इक़ामत शुरू हो गई, इक़ामत से पहले जा सकता है और जब इक़ामत शुरू हो गई तो हुक्म है कि जमाअत में बा निय्यते नफ़ल शरीक हो जाये और मग़रिब, फ़ज्र व अस्र में उसे हुक्म है कि मस्जिद से बाहर चला जाये जब कि पढ़ ली हो। मुक़्तदी ने दो सजदे किये और इमाम अभी पहले ही में था तो दूसरा सजदा ना हुआ।

चार रकअत वाली नमाज़ जिसे एक रकअत इमाम के साथ मिली तो उस ने जमाअत ना पायी, हाँ! जमाअत का सवाब मिलेगा अगर्चे क़ादा -ए- आखिरा में शामिल हुआ हो बल्कि जिसे तीन रकअतें मिलें उस ने भी जमाअत ना पायी जमाअत का सवाब मिलेगा। मगर जिस की कोई रकअत जाती रही उसे उतना सवाब ना मिलेगा जितना अव्वल से शरीक होने वाले को है। इस मसअले का खुलासा ये है कि किसी ने क़सम खायी फुलाँ नमाज़ जमाअत से पढ़ेगा और कोई रकअत जाती रही तो क़सम टूट गयी कफ़्फ़ारा देना होगा, तीन और दो रकअत वाली नमाज़ में भी एक रकअत ना मिली तो जमाअत ना मिली और लाहिक़ का हुक्म पूरी जमाअत पाने वाले का है।

इमाम रुकूअ में था किसी ने उस की इक़तिदा की और खड़ा रहा यहाँ तके कि इमाम ने सर उठा लिया तो वो रकअत नहीं मिली, लिहाज़ा इमाम के फ़ारिग़ होने के बाद इस रकअत को पढ़ ले और अगर इमाम को क़याम में पाया और उस के साथ रुकूअ में शरीक ना हुआ तो पहले रुकूअ कर ले फिर और अफ़आल इमाम के साथ करे और अगर पहले रुकूअ ना किया बल्कि इमाम के साथ हो लिया फिर इमाम के फ़ारिग़ होने के बाद भी रुकूअ किया तो भी हो जायेगी मगर बा-वजहे तर्के वाजिब गुनाहगार हुआ।

इस के रुकूअ करने से पेश्तर इमाम ने सर उठा लिया कि उसे रकअत न मिली तो इस सूरत में नमाज़ तोड़ देना जाइज़ नहीं जैसा बाज़ जाहिल करते हैं बल्कि इस पर वाजिब है कि सजदे में इमाम की मुताबिअत करें अगर्चे ये सजदे रकअत में शुमार ना हों। यूँ ही अगर सजदे में मिला जब भी साथ दे फिर अगर सजदे ना किये तो नमाज़ फ़ासिद ना होगी यहाँ तक कि इमाम के सलाम के बाद उस ने अपनी रकअत पढ़ ली तो नमाज़ हो गयी मगर तर्के वाजिब का गुनाह हुआ।

इमाम से पहले रुकूअ किया लेकिन उस के सर उठाने से पहले इमाम ने भी रुकूअ किया तो हो गया बा-शर्ते ये कि उस ने उस वक़्त रुकूअ किया हो कि इमाम बा-क़द्रे फ़र्ज़ किरअत पूरी कर चुका हो वरना रुकूअ ना हुआ और इस सूरत में इमाम के साथ या बाद अगर दोबारा रुकूअ कर लेगा हो जायेगी वरना नमाज़ जाती रहेगी और इमाम से पहले रुकूअ ख्वाह कोई रुक्न अदा करने में गुनाहगार बहरहाल होगा।

इमाम रूकूअ में था और ये तकबीर कह कर झुका था कि इमाम खड़ा हो गया तो अगर हद्दे रुकूअ में आपसी शिरकत हो गयी अगर्चे क़लील तो रकअत मिल गयी। मुक़तदी ने तमाम रकअतों में रुकूअ व सुजूद इमाम से पहले किया तो सलाम के बाद ज़रूरी है कि एक रकअत बग़ैर किरअत पढ़े ना पढ़ी तो नमाज़ ना हुयी और अगर इमाम के बाद रुकूअ व सुजूद किया तो नमाज़ हो गयी और अगर रुकूअ पहले किया और सजदा साथ तो चारों रकअतें बग़ैर किरअत पढ़े और रुकूअ साथ किया सजदा पहले तो दो रकअत बाद में पढ़े।