जब पखाना और पेशाब के लिये जायें तो बेहतर है कि दाखिल होने से पहले दुआ पढ़ लें: بِسْمِ اللہِ اللھُمَّ اِنِّیْ اَعُوْذُ بِکَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَائِثِ
ये दुआ पढ़ने के बाद बाया क़दम पहले दाखिल करें और निकलते वक़्त दाहिना क़दम पहले निकालें।
बाहर निकलते वक़्त ये पढ़ें : بِغُفْرَانَکَ اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِیْ اَذْھَبَ عَنِّیْ مَا یُؤْذِیْنِیْ وَاَمْسَکَ عَلَیََّ مَا یَنْفَعُنِیْ
पखाना या पेशाब करते वक़्त ना पीठ क़िब्ला की तरफ करें ना मुँह। ये हुक्म घर के अन्दर और बाहर मैदान दोनों का है और अगर गलती से भूल कर बैठ जायें तो याद आने पर घूम जायें। अगर बच्चे को पखाना या पेशाब कराने वाला उसे क़िब्ला की तरफ कराता है तो गुनाहगार होगा।
हवा के रुख पेशाब करना मम्नूअ है। इस से होगा ये कि क़तरे उड़ कर वापस आयेंगे।
कुएँ, हौज़ या जमे हुये पानी या बहते हुये पानी में पेशाब करना मकरूह है।
फलदार दरख्त के नीचे या उस खेत में जिस में खेती हो या साये में जहाँ लोग उठते बैठते हों या मस्जिद और ईदगाह के पहलू में या क़ब्रिस्तान या रास्ते में या जिस जगह मवेशी बन्धे हों, इन सब जगहों में पेशाब पखाना मकरूह है।
जिस जगह वुज़ू या गुस्ल किया जाता हो वहाँ पेशाब करना मकरूह है।
खुद नीची जगह बैठना और पेशाब ऐसी जगह करना जो ऊँची हो, ये मम्नूअ (मना) है।
सख्त जमीन या पक्के फर्श पर जिस से क़तरे उड़ कर आयें, उस पर पेशाब करना मम्नूअ है।
अगर सख्त जमीन हो तो कुरेद कर या गाढ़ा करके पेशाब करना चाहिये।
खड़े हो कर या लेट कर या नंगे होकर पेशाब करना मकरूह है।
पेशाब या पखाना करते वक़्त नंगे सर नहीं जाना चाहिये।
साथ में कोई ऐसी चीज़ ना ले जायें किस पर कोई दुआ या अल्लाह व रसूल का नाम रखा हो या किसी बुज़ुर्ग का नाम लिखा हो।
पेशाब के वक़्त बात करना मकरूह है।
पेशाब करने में जितना बदन खोलना चाहिये उतना ही खोलें, हाजत से ज़्यादा ना खोलें।
पेशाब करते वक़्त बायें पैर पर ज़ोर दे कर बैठना चाहिये।
पेशाब या पखाना करते वक़्त किसी दीनी मसअले पर गौरो फिक्र ना करें।
छींक या अज़ान का जवाब ज़ुबान से ना दें और बिला ज़रूरत शर्मगाह को ना देखें और ना ही नजासत की तरफ नज़र करें।
पखाने में ज़्यादा देर तक ना बैठें, इस से बवासीर का अंदेशा है। बाज़ लोग मोबाइल में गेम खेलना शुरू कर देते हैं और फिर पता ही नहीं चलता कि आधे घंटे से टॉयलेट में हैं।
आज कल तो इंग्लिश सीट का रिवाज भी है जिस में आराम से कुर्सी पर बैठने की तरह बैठे रहते हैं। साथ में अमीरों ने तो बाथरूम में भी टीवी तक लगाना शुरू कर दिये हैं ताकि वहाँ भी टाईम पास कर सकें।
नजासत में थूकना या खंकार डालना जाइज़ नहीं क्योंकि ये पाक हैं और पाक चीज़ को नापाक शय में मिलाना दुरुस्त नहीं।
ढेलों से तहारत उस वक़्त होगी जब नजासत मखरज के आस पास एक दिरहम से ज़्यादा ना लगी हो। अगर दिरहम से ज़्यादा सन जाये तो अब धोना फर्ज़ है लेकिन ढेले लेना अब भी सुन्नत रहेगा।
कंकर, पत्थर, फटा हुआ पुराना कपड़ा ये सब ढेले के हुक्म में है यानी इन्हें भी इस्तिमाल कर सकते हैं। इन से भी सफाई बिला कराहत जाइज़ है।
दीवार से भी इस्तिन्जे को सुखा सकता है पर दीवार अपनी होनी चाहिये, किसी दूसरे की दीवार पर नहीं। अगर दूसरे की है या वक़्फ है तो ऐसा करना मकरूह है पर तहारत हो जायेगी।
हड्डी, खाने की चीज़, गोबर, पक्की ईंट, कोयला, शीशा और जानवर का चारा और ऐसी चीज़ जिस की क़ीमत हो अगर्चे एक आध पैसा ही सही तो उस से इस्तिन्जा करना मकरूह है।
जब इस्तिन्जा से फारिग हो जायें तो मर्द बायें हाथ से अपने आले को जड़ से सिरे की तरफ सोन्टे ताकि बाक़ी क़तरे निकल आयें। फिर ढेलों का इस्तिमाल करें, अगर पानी से तहारत करनी है तो पानी से धो लें।
पखाना के बाद पहले पेशाब के मक़ाम को धोयें फिर पखाना के मक़ाम को और साँस को नीचे की तरफ ज़ोर दे कर पखाना का मक़ाम धोयें।
आगे या पीछे से जब नजासत निकले तो ढेलों से तहारत हासिल करना सुन्नत है। और अगर सिर्फ पानी से भी तहारत कर लें तो जाइज़ है मगर मुस्तहब ये है कि ढेले लेने के बाद पानी से तहारत करें।
ढेलों की कोई तादाद मुअ़य्यन (Fix) नहीं है, अगर एक से साफ़ हो जाये तो सुन्नत अदा हो जायेगी और अगर तीन ढेलों से साफ़ ना हो तो सुन्नत अदा ना हुई।
बेहतर ये है कि ढेले ताक़ (Odd) हो यानी अगर 2 से तहारत हो गई तो एक और ले कर तीन कर दें और अगर चार से हो हो जाये तो एक और ले कर पाँच कर दें।
कागज़ से इस्तिन्जा मना है, अगर्चे कुछ लिखा हुआ ना हो या अबू जहल जैसे काफ़िर का नाम ही क्यों ना लिखा हो।
आज कल टिशू पेपर का इस्तिमाल आम होता जा रहा है। अल्लामा नसीरुद्दीन मदनी लिखते हैं कि टिशू पेपर भी कागज़ की ही एक क़िस्म है जैसा कि नाम से जाहिर है। खाना खाने के बाद इस का इस्तिमाल मकरूह है जैसा कि बहारे शरीअ़त में है कि खाने के बाद कागज़ से उंगलियाँ पोछना मकरूह है।
फ़तावा आलमगीरी, फ़तावा रज़विया और उस के हाशिये में मुफ्ती -ए- आज़म रहीमहुल्लाह त'आला ने लिखा है कि खाने के बाद कागज़ से हाथ नहीं पोछना चाहिये।
इस्तिन्जे में इसका इस्तिमाल मकरूहे तहरीमी है कि इस्तिन्जे के लिये मख्सूस चीज़ों के लिये हर मुहतरम और क़ीमती चीज़ का इस्तिमाल मकरूह है, इसके अलावा ये सुन्नते नसारा है और तर्के सुन्नते मुअक्किदा की आदत खुद मोजिबे कराहते तहरीमी है और ये टिशू पेपर का इस्तिमाल उमूमे बलवा भी नहीं।
टिशू पेपर से इस्तिन्जा करने के बारे में अ़ल्लामा मुफ्ती अख्तर हुसैन क़ादरी लिखते हैं कि टिशू पेपर के लफ्ज़ से ही वाज़ेह है कि वो कागज़ है और कागज़ की ताज़ीम का हुक्म है। अगर्चे सादा हो और अगर कुछ लिखा है तो और ज़्यादा ताज़ीम की ज़रूरत है। और किसी भी क़ाबिले ताज़ीम या क़ीमत वाली चीज़ से इस्तिन्जा करना मकरूह व मम्नूअ है।
दुर्रे मुख्तार में है कि किसी क़ाबिले ताज़ीम चीज़ से इस्तिन्जा करना मकरूहे तहरीमी है।
फिर लिखते हैं कि कागज़ से इस्तिन्जा इसीलिये मकरूह है कि पहले तो वो चिकना होता है। दूसरा उस की क़ीमत होती है। तीसरा ये कि वो आला -ए- किताबत है यानी लिखने के लिये होता है। टिशू पेपर में चिकनाहट तो नहीं होती लेकिन लिखने के क़ाबिल होता है और अगर ये बात ना मानी जाये तो फिर भी उसकी क़ीमत तो होती ही है और इसके मकरूह होने की सराहत मौजूद है।
कागज़ से इस्तिन्जा करना सुन्नते नसारा भी है लिहाज़ा इसका इस्तिमाल करना मकरूहे तहरीमी है और मुसलमानों को इस से बचना चाहिये।
(فتاوی علیمیہ، ج1، ص 103)
तनवीरुल फ़तावा में है कि कागज़ से इस्तिन्जा मना है और इसकी वजह उस का लिखने के क़ाबिल होना है लेकिन जो टिशू पेपर (Toilet Paper) होते हैं वो खास कर इस्तिन्जे के लिये ही बनाये जाते हैं और लिखने के क़ाबिल नहीं होते तो इनसे इस्तिन्जा करना जाइज़ है।
(تنویر الفتاوی، ص 122)
उलमा ने इसे नाजाइज़ भी लिखा है और जाइज़ भी। ऐसा इसीलिये कि ये कागज़ तो है पर ये लिखने के क़ाबिल नहीं होता। बाज़ ने कहा कि अगर्चे लिखने के क़ाबिल नहीं लेकिन क़ीमती है और ये तरीक़ा नसारा का है तो इस्तिमाल जाइज़ नहीं और बाज़ कहते हैं कि जाइज़ है। बेहतर यही है कि टिशू पेपर के इस्तिमाल से बचा जाये और खाने के बाद भी इस से हाथ पोछने से बचें।
आज कल शादियों में टेबल पर कागज़ बिछाने का रिवाज है फिर उस से सब हाथ भी पोछते हैं, टिशू पेपर का भी इस्तिमाल हो रहा है। इन सब से बचा जाये सिर्फ टेबल पर भी खाना खाया जा सकता है और पोछने के लिये तौलिये, रूमाल वग़ैरह का इन्तिज़ाम करना बेहतर होगा।
दाहिने हाथ से इस्तिन्जा करना मकरूह है, अगर बायें हाथ में कोई तकलीफ़ है तो दाहिने हाथ से जाइज़ है। आले को दाहिने हाथ से छूना या ढेला ले कर उस पर गुज़रना भी मकरूह है। जिस ढेले को एक बार इस्तिमाल कर लिया उसे दोबारा इस्तिमाल में लाना मकरूह है, हाँ उसकी करवट जो साफ़ है उस से इस्तिन्जा कर सकते हैं।
पेशाब करने के बाद जिस को ये एह्तिमाल है कि क़तरा आयेगा उस पर इस्तिबरा करना वाजिब है यानी पेशाब करने के बाद कोई ऐसा काम करना जिस से बाक़ी क़तरे आ जायें। इस्तिबरा टहलने से होता है या पाऊँ के ज़मीन पर मारने से या दाहिने पाऊँ को बायें या बायें को दाहिने पर रख के ज़ोर देने से या बुलंदी से उतरने में या नीचे से बुलंदी पर चढ़ने से या खंकारने से या बायें करवट पर लेटने से तो इस तरह इस्तिबरा किया जा सकता है और इस्तिबरा उस वक़्त तक करे जब तक इत्मिनान ना हो जाये।
टहलने की मिक़्दार बाज़ उलमा ने 40 क़दम बतायी है यानी 40 क़दम चले और फिर जा कर तहारत कर ले लेकिन बेहतर है कि जितने में इत्मिनान हो जाये उतना चलें और ये हुक्म मर्दों के लिये है। औरतों को चाहिये कि फारिग होने के बाद थोड़ी देर रुक कर तहारत कर ले।
पखाने के बाद पानी से तहारत का तरीक़ा ये है कि पाऊँ फैलाकर बैठे और आहिश्ता आहिश्ता पानी डाले और उंगलियों के पेट से धोये, उंगलियों के सिरे इस्तिमाल ना करे। बीच की उंगली को ऊँची रखे फिर उस के बगल वाली फिर सबसे छोटी वाली और अच्छी तरह धोये।
हथेली से भी धोने से तहारत हो जायेगी। पखाने के बाद औरत हथेली से धोये और मर्द के मुक़ाबिल ज़्यादा फैल कर बैठे। तहारत के बाद हाथ पाक हो गये पर दोबारा मिट्टी से धो लेना मुस्तहब है। आज कल शहरो में साबुन या हैण्ड वॉश इस्तिमाल करते हैं ये भी जाइज़ है।
जाड़े में पखाने के बाद धोने में ज़्यादा एहतियात करें। गर्म पानी से भी करें तो अच्छी तरह धोयें पर ठंडे पानी से ही बेहतर है। रोज़े के दिनों में ना ज़्यादा फैल कर बैठे और धोने में ना ज़्यादा मुबालिगा करे।
मर्द इस्तिन्जा ना कर सकता हो तो बीवी, और बीवी माज़ूर हो तो शौहर करा सकता है। अगर औरत का शौहर नहीं तो बेटा, भाई, बाप, बहन कोई नहीं करा सकता, फिर माफ़ है।
ज़मज़म के पानी से इस्तिन्जा करना मकरूह है और ढेला ना लिया हो तो नाजाइज़ है। वुज़ू से बचे हुये पानी से इस्तिन्जा खिलाफे अवला है। तहारत से बचे हुये पानी से वुज़ू कर सकते हैं, इसे फेंक देना इसराफ़ है।
ये इस्तिन्जे के बारे में ज़रूरी मसाइल बयान किये गये। तहारत में और भी बातें आती हैं जैसे तयम्मुम, तयम्मुम किन चीज़ों से होता है, मोजों पर मसहा, मसहा कब टूट जाता है, ये सब नमाज़ के मसाइल बयान करने के बाद बयान किये जायेंगे अब हम वापस शराइते नमाज़ और फराइज़े नमाज़ की तरफ़ चलेंगे।